ख्वाहिशों की मौत-13
कोतवाल चाचा पूरे रास्ते दिनेश को समझाते रहे। तकरीबन दो घंटे के सफर में कोतवाल चाचा दिनेश को समझा रहे थे, या अपनी स्मृतियों को ताजा कर रहे थे। समझ नहीं आ रहा था क्योंकि वह किसी किस्सों और कहानियों की तरह अपनी बात रखे जा रहे थे। दिनेश भी कुछ समय बाद सिर्फ हामी भरने में मशगूल खिड़की से बाहर भूली बिसरी यादों को याद करता हुआ चला जा रहा था। कभी अतीत की यादें उसको झकझोर देती तो कभी खिड़की से आने वाली हवा उससे अपने पिता के नजदीक होने का एहसास दिलाती I
मथानिया......... मथानिया......... के स्वर ने उसे जैसे गहरी नींद से जगा दिया और वह अत्यंत भावविभोर हो उठा। उसकी जन्मभूमि और पिता का प्यार जैसे एक साथ मनाया हो। बस रुकते ही जैसे वो दरवाजे से कूदा और फटाफट कोतवाल चाचा को उतारने में मदद करने लगा। देखा सामने चौधरी(दिनेश के मामा ) मुस्कुराते हुए बाहें पसारे सामने खड़ा था। दिनेश लपक कर उनकी बाहों में ऐसा सिमटा जैसे नदिया समुद्र में समाहित हो जाना चाहती है। दिनेश रोता रहा.......... और चौधरी उसे समझाता रहा I दिनेश यह सोचकर हैरान था कि चौधरी के चेहरे पर मुस्कान कैसे हो सकती है जबकि उनके दोस्त और जीजा इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन वह शायद इस विषय पर केंद्रित ना करा सका। अंत में चौधरी ने उसके असमंजस की स्थिति को देखकर थोड़ी दूर ढाबे पर ले जाकर गाड़ी रोका और बोला, थोड़ी चाय पी ले दिनेश और नाश्ता भी कर ले। ज्यादा मत रो... जानता हूं तेरा बाप मरा है...... तो मैंने भी अपना दोस्त और जीजा खोया है। फिर भी मुस्कुरा रहा हूं मैं........जीवन का यही सत्य है प्यारे.....
आज बाप गया तो हो सकता है, कल मामा भी ना रहे तेरा I हो सकता है अगली बार तुझे लेने यह तेरा मामा ना आ पाए I और फिर फर्क ही क्या पड़ता है तुम लोगों को, खैर छोड़ो अब और नहीं समझाऊँगा। घर में से लोग आये हैं, रोने में कोई पानी भी नहीं पूछेगा। तु लंबे सफर से आया है। चौधरी सब जानता है। चुपचाप जल्दी खाओ और चल घर... मुझे और बहुत से काम करना है। रोते रह कर बैठे जाने और लोगों को लाने ले जाने के अलावा बहुत से काम है।
तेरी ही तरह गांव के बाकी लड़के भी आजकल मां बाप के मरने पर ही घर आने को उचित समय समझने लगे। बाकी सब टाइम तो उन्हें लगता है। हम बहाने ही बना रहे हैं। सब अपनी दुनिया में मस्त होते चले I बड़े ही कठोर लेकिन सच्चे शब्द थे उनके..... ऐसा लग रहा था जैसे बाबूजी की सारी शिकायतें सुन दिनेश के प्रति उनका सारा प्यार खत्म सा हो गया है और हो भी क्यों ना वाकई कितनी दफा चौधरी ने भी खत लिखे थे गांव आने के लिए, और दिनेश है कि नौकरी में इतना मशगूल हो चला था कि नौकरी करने और ब्याह के बाद आज पहली दफा वापस गांव लौट रहा था। यहां तक कि उसके बच्चे को भी गांव वाले ने अभी पहली बार जब प्रीति संग बाबूजी जिद कर ले आए थे तभी देखा था,
क्या गजब की पीढ़ी है। हर कोई अपनी औलाद को सीने से लगा कर रखना चाहता है। खुद मां-बाप की तकलीफ को नजरअंदाज करता है। कभी यह नहीं सोचता कि वह भी उस प्यार के भूखे हैं जो हम अपने बच्चे से चाहते हैं। दिनेश के आंखों के आंसू मरुस्थल में तब्दील हो गए। उसका अपराध बोध उसे अंदर तक छू रहा था। चौधरी से नजर मिलाने की हिम्मत ना बची थी उसमें और सफाई देने के लिए शब्द नहीं। उसके पास चुपचाप जो सामने आया खा लिया.. जो दिया पी लिया.... और सीधे चौधरी के साथ गाड़ी में बैठ गया। अब दिनेश की आंखों में सिर्फ यादें ही बची थी। आंसू तो जैसे चौधरी के क्रोध और बताए हुए कड़वे सच में गुम हो गए। चौधरी अत्यंत गंभीर मुद्रा में अपनी गाड़ी चलाये जा रहा था और समय-समय पर दिनेश की और कहने को तो क्रोध भाव से देखता, लेकिन कहीं ना कहीं उसकी आंखों में छुपी ममता भी नजर आ रही थी..
क्रमशः ...........
Rupesh Kumar
19-Dec-2023 09:17 PM
V nice
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Shnaya
19-Dec-2023 11:19 AM
Nice one
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Alka jain
19-Dec-2023 10:49 AM
Nyc
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